Tuesday, April 7, 2009

सपने


मेरी आखों को कुछ अच्छा न लगे
कुछ ऐसे तुम मुझसे नज़रें मिलाना
की दिन का हर पल हर लम्हा सुहाना लगे
कुछ ऐसे मेरे साथ तुम वक़्त बिताना

की हंसी मेरे लबों से उतरना न चाहे
कुछ ऐसे मेरे लिए तुम मुस्कुराना
की हो जाये मुझे खुशियों की आदत
कुछ ऐसे मेरी ज़िन्दगी से ग़मों को मिटाना

की मुझमे भी जागे सपने सच करने की उम्मीद
कुछ ऐसे तुम मेरे लिए ख्वाब सजाना
की मैं हर रात का इंतज़ार करून
कुछ ऐसे तुम मुझे आसमान का वो तारा दिखाना

की तुम देखते रहो मुझे हर दम
कुछ ऐसे मुझे अपने सामने बिठाना
की मैं नाराज़ होना चाहूं बार बार
कुछ ऐसे तुम मुझे रूठने पर मनाना

की करता रहूँ तुझे प्यार उम्र भर
कुछ ऐसे शमा-ऐ-मोहब्बत को जलाना
की हो मेरा बसेरा कहीं और नामुमकिन
कुछ ऐसे कुछ ऐसे मुझे अपने दिल में बसाना

की बन जाओ मेरे दिल की धड़कन
कुछ ऐसे तुम मेरे दिल में समाना
की नामंजूर हो मुझे किसी और का होना
कुछ ऐसे तुम मुझे अपना बनाना

की मुझे बारिश की बूंदे भी अधूरी लगे
कुछ ऐसे मुझ पर तुम प्यार बरसाना
की बनजाये हम मोहब्बत की मिसाल
कुछ ऐसे तुम इस रिश्ते को निभाना

की ज़िन्दगी का आखरी पल भी हसीं लगे
कुछ ऐसे मुझे तुम गले से लगाना
की मौत भी हमें जुदा न कर पाए
कुछ ऐसे मैं तेरा हो जाऊं …
कुछ ऐसे ..तुम मेरी हो जाना !

1 comments:

Amit April 22, 2009 at 2:35 AM  

Hey dude,

Its really nice poem....

:)

Cheers,
Amit

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